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Monday 25 April 2016

लोग हर मोड़ पर रुक – रुक के संभलते क्यों है
लोग हर मोड़ पर रुक – रुक के संभलते क्यों है
इतना डरते है तो फिर घर से निकलते क्यों है
मैं ना जुगनू हूँ दिया हूँ ना  कोई तारा हूँ
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं
नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ – आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं
मोड़ तो होता हैं जवानी का संभलने के लिये
और सब लोग यही आकर फिसलते क्यों हैं

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आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं 
मंजिलें रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो

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सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें

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हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं

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जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं

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इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए

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काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं
आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं

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जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे
तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे

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उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं

चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब

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इन्तेज़ामात  नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ
मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ

Monday 4 April 2016

Auluck: ATTITUDE SHAYARI

तू बेशक अपनी महफ़िल में मुझे बदनाम करती हैं
लेकिन तुझे अंदाज़ा भी नहीं कि वो लोग भी मेरे पैर छुते है..
जिन्हें तू भरी महफ़िल में सलाम करती है.
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बारुद जैसी है मेरी शक्शीयत ..
जहा से गुजरता हुं, लोग जलना शुरु कर देते हैं

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आँख उठाकर भी न देखूँ,
जिससे मेरा दिल न मिले,
जबरन सबसे हाथ मिलाना,
मेरे बस की बात नहीं.

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मैं बड़ो कि इज़्जत इसलिए करता हु,.
क्यूंकि उनकी अच्छाइया मुझसे ज़्यादा है.
और छोटो से प्यार इसलिए करता हु.
क्यूंकि उनके गुनाह मुझसे कम…

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दुनिया दारी की चादर ओड़ के बैठे हैं..
पर जिस दिन दिमाग सटका ना..
इतिहास तो इतिहास, भुगोल भी बदल देंगे..

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Sanam Teri Nafrat Mein Wo Dam Nahi,
Jo Meri Chahat Ko Mita De,
Ye Mohabbat Hai Koi Khel Nahi,
Jo Aaj Hans Ke Khela Aur Kal Ro Ke bhula de.

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Teri Mohabbat mein
Aur meri fitrat mein
Fark sirf itna hai,
K tera attitude nahi jata
Aur mujhe jhukna nahi aata!


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Kutte bhonkte hai
Zinda hone ka ehsas dilane k liye
Jungle ka sanata
Sher ki mauzudgi baya karta hai!

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Use bhul kar jiya to kya jiya,
Dam hai to use pakar dikha,
Likh patthro par apne prem ki kahani,
Aur sagar ko bol Dam hai to ise mita kar dikha!

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Maana ki naseeb mein mere koi sanam nahi,
Fir bhi koi shikwa koi gam nahi,
Tanha the aur tanha jiye jaa rahe hai.,
Badnasib to wo hai jinke nasib mein hum nahi.

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Mujhe pta hai..
Meri khuddari tumhe kho degi,
Main bhi kya karu..
Mujhe maangne ki aadat nahi

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